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संभल में ठंड से बचने के लिए आग का सहारा लेते लोग
– फोटो : संवाद
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संभल में ठंड का व्यापक असर देखने को मिल रहा है। घना कोहरे का असर यातायात और रेल सेवा पर पड़ा है। इस सर्दी के सीजन की सबसे सर्द सुबह शनिवार रही। दिन का तापमान सात डिग्री तापमान दर्ज किया गया है। पाला गिरने से बारिश की तरह मौसम नजर आया। कोहरे की धुंध के साथ पाले की बौछार ने गलन को बढ़ा दिया है।
पिछले एक सप्ताह से लगातार सर्दी बढ़ रही है। तापमान में भी लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। शुक्रवार की रात से ही पाला बौछार के रूप में गिरता दिखाई दिया। सड़कें बारिश के मौसम की तरह गीली नजर आईं। शनिवार सुबह तक पाला गिरता रहा। इसके बाद धूप मामूली सी दिखाई दी। इससे राहत नहीं मिली।
शाम होने पर सर्द हवाओं के साथ गलन बढ़ गई। जिला अस्पताल के चिकित्सक डॉ. चमन प्रकाश ने बताया कि पाला गिरने पर बचना चाहिए। इससे तबीयत बिगड़ जाती है। सर्दी का मौसम सबसे ज्यादा सेहत पर असर करने वाला होता है। खासतौर से बच्चे और बुजुर्ग इस मौसम में बचकर ही रहने चाहिए। बताया कि इस समय सर्दी से पीड़ित मरीजों की संख्या काफी है।
हर दिन ओपीडी में ऐसे मरीज पहुंच रहे हैं। वहीं दूसरी ओर यातायात पुलिस प्रभारी अनुज मलिक का कहना है कि कोहरे के दौरान वाहन चालकों को ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत है। ज्यादा कोहरा होने पर सुरक्षित स्थान पर वाहन को खड़ा करना चाहिए। यदि मजबूरन जाना है तो फॉग लाइट और इंडिकेटर का इस्तेमाल करें। जिससे हादसे का खतरा कम किया जा सके।
ठंड से बच्चों में बढ़ रही सांस लेने की समस्या
जिला अस्पताल में शनिवार को 597 ओपीडी रही। इसमें करीब 100 बच्चे भी शामिल थे। ठंड से बच्चों को सांस लेने की समस्या हो रही है। चिकित्सकों का कहना है कि इस मौसम में सांस लेने में दिक्कत आ जाती है। एहतियात बरतने से बचा जा सकता है। जिला अस्पताल में बच्चों की ओपीडी करते मिले डॉ. रामलाल यादव ने बताया कि हर दिन करीब 100-120 बच्चे आते हैं।
इसमें 30-35 को सांस लेने में दिक्कत होती है। इन्हें दवाई देकर सलाह दे दी जाती है। सर्दी से बच्चों को बचाने के लिए गर्म कपड़े पहनाएं। उन्हें गर्म स्थान पर रखें। डॉक्टर ने बताया कि बड़ों के मुकाबले छोटे बच्चों का लंग्स काफी कमजोर होता है। यह प्रदूषक तत्व को छान नहीं पाते और लंग्स के टिशु से होते हुए आसानी से खून व ऑक्सीजन में मिलकर दिल, दिमाग तक पहुंच जाते हैं।
इन प्रदूषक तत्वों के कारण बच्चों में परेशानी होने की समस्या काफी ज्यादा रहती है। बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बड़े लोगों के मुकाबले काफी कम होती है और यह इन विषैले तत्व से लड़ नहीं पाते।
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