10 August 1942 kranti history in agra after death of youth parashuram

क्रांति की ज्वाला:अगस्त क्रांति के पहले शहीद थे परशुराम,  दस अगस्त, 1942 के दिन को स्वर्ण अक्षरों से लिखा – 10 August 1942 Kranti History In Agra After Death Of Youth Parashuram

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10 अगस्त 1942
– फोटो : अमर उजाला

विस्तार


दस अगस्त, 1942 का दिन ताजनगरी के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा गया है। इसी दिन क्रांति की ज्वाला में शहर का वीर सपूत परशुराम शहीद हो गया था। अंग्रेजों की गोली ने उसके शरीर को छलनी कर दिया था। इस शहादत के बाद पूरे जिले में उग्र आंदोलन शुरू हो गए थे। क्रांतिकारियों ने कई सरकारी इमारतों को फूंक दिया और ट्रेन की पटरियां उखाड़ दी थीं।

अंग्रेज अधिकारियों के पसीने छूट गए

नौ अगस्त को कई दिग्गज नेताओं की गिरफ्तारी के बाद शहर में छिटपुट प्रदर्शन शुरू हो गए थे। देर शाम क्रांतिकारियों की एक गोपनीय बैठक में फैसला लिया गया कि दस अगस्त को विरोध स्वरूप शहर को बंद कर फुलट्टी बाजार से एक बड़ा जुलूस निकाला जाएगा। यह खबर जंगल की आग की तरह फैली और हजारों लोग बाजार के तिराहे पर पहुंच गए। इतनी बड़ी संख्या में लोगों को देख अंग्रेज अधिकारियों के पसीने छूट गए। जुलूस के बाद क्रांतिकारियों ने मोतीगंज स्थित कचहरी के मैदान में सभा बुलाई। बाबूलाल मित्तल सहित कई दिग्गजों की अगुवाई में जुलूस ने कचहरी की ओर रुख कर लिया।

मशालें लिए लोग मैदान की ओर बढ़ रहे थे

उधर पुलिस ने पहरा सख्त कर लिया। सायरन बजातीं गाड़ियां सड़कों पर दौड़ने लगीं। मोतीगंज के मुख्य मैदान के फाटक को बंद कर दिया गया। गेट के बाहर, हाथों में बंदूक लिए पुलिसकर्मियों की कतारें लग गईं। हाथों में मशालें लिए लोग मैदान की ओर बढ़ रहे थे। पुलिस ने बाबूलाल मित्तल को गिरफ्तार कर लिया। लोगों ने विरोध किया तो बल प्रयोग किया। यहीं बात बिगड़ गई। भीड़ उग्र हो गई। अंग्रेज अधिकारियों के आदेश पर पुलिस ने फायरिंग कर दी। इतिहासकार बताते हैं कि तमाम लोग हाथीघाट के पत्थरों की आड़ में छिप गए।

इसके बाद तो पूरा शहर सड़कों पर उतर आया

हाथीघाट से दरेसी की ओर जाने वाली सड़क पर पुलिस की नाकेबंदी को चीरते हुए भीड़ आगे बढ़ी। अगुवाई परशुराम नाम का युवक कर रहा था। पुलिस ने सीधे फायर झोंक दिए। दो गोलियां परशुराम के सीने के आरपार निकल गईं। भीड़ तितर-बितर हो गई। पुलिसकर्मियों ने घायल परशुराम को एक गाड़ी में डाला। अस्पताल ले जाने के रास्ते में वीर सपूत परशुराम ने दम तोड़ दिया। अगस्त क्रांति की ताजनगरी में यह पहली शहादत थी। इसके बाद तो पूरा शहर सड़कों पर उतर आया। अगले दिन से आंदोलन और तेज हो गया। कई सरकारी इमारतों को आग के हवाले कर दिया गया। गिरफ्तारी करने गली-मोहल्लों में पहुंचने वाले पुलिसकर्मियों को भगा दिया जाता था। यह सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा।

गायब हो गई नाम पट्टिका

जानकार बताते हैं कि काफी समय पहले शहीद परशुराम के नाम की पटिट्का बिजलीघर चौराहे पर लगाई गई थी। बरसों तक लगी रही लेकिन अब गायब है। अगस्त क्रांति में अपनी जान न्यौछावर करने वाली शहीद परशुराम के परिवार को भी आजादी के बाद कोई मदद नहीं मिली। आंदोलन के दौरान शहीद हुए कई लोगों को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा भी नहीं दिया गया। 

महज 20 साल में हुए शहीद

इतिहासकार बताते हैं कि शहादत के समय परशुराम की उम्र महज 20 साल रही होगी। वे भीड़ में पीछे चल रहे थे लेकिन जैसे ही दरेसी के पास अंग्रेजों की नाकेबंदी को देखा तो आक्रोशित हो उठे। हाथ में झंडा उठाए, अपने अन्य साथियों को पीछे धकेलते हुए, आगे दौड़ पड़े। इसी दौरान पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी।

पुलिस के साथ हुईं हिंसक झड़पें

परशुराम की शहादत के बाद तो शहर के हर कोने से आंदोलन की जानकारी मिल रही थी। बरहन रेलवे स्टेशन पर क्रांतिकारियों ने प्रदर्शन किया और उसे आग के हवाले कर दिया। कई अन्य स्थानों पर भी पुलिस के साथ हिंसक झड़पें हुई थीं। -रानी सरोज गौरिहार, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी

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