आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव: बसपा को फेल करने के लिए सपा के रणनीतिकारों का फोकस दलित-मुस्लिम गठजोड़ पर

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ममता त्रिपाठी

लखनऊ.  समाजवादी पार्टी (सपा (samajwadi party)) ने अपना गढ़ बचाने के लिए आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव के लिए मुस्लिम- यादव गठजोड़ के अलावा दलित वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए रणनीति तैयार की है. पार्टी के दलित नेताओं को गांव गांव जाकर जनसभाएं और रात्रि विश्राम करने को कहा गया है. अपने प्रवास के दौरान ये नेता राम मनोहर लोहिया और डाक्टर भीमराव अंबेडकर के विचारों को लोगों तक पहुंचाएंगे. इसके लिए पार्टी ने इंद्रजीत सरोज, मिठाई लाल भारती, रमाशंकर विद्यार्थी और सुशील आनंद सरीखे नेताओं को काम पर लगाया है ताकि वो अपने लोगों को ये भी समझा सकें कि सपा ही उनके मुद्दों को राज्य और देश की राजनीति में ठीक से उठा सकती है.

पल्लवी पटेल के जीतने के पीछे का गणित
इंद्रजीत सरोज ने विधानसभा चुनाव में केशव मौर्य के चुनाव क्षेत्र सिराथू में दलित वोटरों को सपा के पक्ष में काफी हद तक लामबंद किया था जिसके चलते पल्लवी पटेल वहां से चुनाव जीत पाई थीं. दलित नेताओं ने चुनाव में जहां जहां सभाएं की थीं उसका नतीजा पार्टी के लिए सुखद रहा था. उन सीटों पर समाजवादी पार्टी का वोट प्रतिशत बढ़ा था. उसी प्रयोग को सपा एक बार फिर आजमगढ़ में दोहराना चाहती है.

आजमगढ़ लोकसभा सीट पर कुल मतदाताओं की संख्या करीब 18 लाख है जिसमें करीब साढ़े चार लाख दलित मतदाता हैं. विधानसभा वार मेंहनगर में एक लाख से अधिक, मुबारकपुर में करीब 80 हजार, सगड़ी में करीब 82 हजार, गोपालपुर में करीब 55 हजार से ज्यादा दलित मतदाता हैं.

बसपा की मुस्लिम-दलित रणनीति को फेल करना चाहेगी सपा
बसपा की मुस्लिम-दलित रणनीति को फेल करने के लिए, समाजवादी पार्टी के रणनीतिकारों ने दलित-मुस्लिम गठजोड़ पर फोकस किया है ताकि बहुजन समाज पार्टी चुनाव चौसर से बाहर नजर आए. मायावती ने विधानसभा चुनाव के तुरंत बाद ही गुड्डू शाह जमाली को बसपा का उम्मीदवार घोषित कर दिया था. गुडडू दो बार विधायक भी रह चुके हैं और इलाके में उनकी अच्छी पकड़ है, खासतौर से मुस्लिम वोटरों के बीच. बसपा के नेताओं का कहना है कि मायावती की दो रैलियां इस चुनाव में मेंहनगर और मुबारकपुर क्षेत्र में होनी हैं. चूंकि बसपा ने रामपुर उपचुनाव में कोई उम्मीदवार नहीं उतारा है इसलिए बसपा का सारा फोकस आजमगढ़ पर है. सपा मुस्लिम-दलित गठजोड़ का प्रयोग रामपुर लोकसभा सीट पर भी कर रही है.

आजमगढ़ की सीट जीतना प्रतिष्ठा का सवाल
काफी जद्दोजहद और भीतरघात की आशंका के बीच, समाजवादी पार्टी ने आजमगढ़ से धर्मेद्र यादव को प्रत्याशी बनाया है. अखिलेश यादव के लिए आजमगढ़ की सीट जीतना प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है, साथ ही उनके सियासी दांव-पेच का इम्तिहान भी इस चुनाव में होना है. ये जीत इसलिए भी जरूरी है क्योंकि आजमगढ़ की दसों विधानसभा सीटों पर सपा के विधायक हैं. सपा के लिए आजमगढ़ कितना जरूरी है, ये इसी से समझा जा सकता है कि मुलायम सिंह यादव भी धर्मेद्र यादव का प्रचार करने आजमगढ़ जाएंगे ताकि मतदाताओं का पार्टी से भावनात्मक जुड़ाव बढे़गा. पार्टी ने उपचुनाव के लिए 40 स्टार प्रचारकों की लिस्ट जारी की है जिसमें सपा विधायक शिवपाल सिंह यादव का नाम नहीं है. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि आजम खान शिवपाल सिंह यादव को रामपुर के चुनाव प्रचार के लिए बुलाते हैं या नहीं. आजम खान और अब्दुल्ला का नाम स्टार प्रचारकों की लिस्ट में शामिल है.

आजमगढ़ लोकसभा सीट पर वोटों की बात करें तो 2019 के आंकड़ों के मुताबिक 18 लाख वोटर हैं जिसमें सवर्ण 17 प्रतिशत, दलित 25 प्रतिशत, पिछड़ा 40 प्रतिशत जिसमें से 21 प्रतिशत गैर-यादव हैं, मुस्लिम 18 प्रतिशत हैं.

Tags: By election, Samajwadi party

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